एडीएचडी -अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर (ADHD)

एडीएचडी -अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर (ADHD)

एडीएचडी -अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डरएडीएचडी अर्थात अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर, दिमाग से संबंधित विकार है जो बच्‍चों और बड़ों दोनों को होता है। लेकिन बच्‍चों में इस रोग के होने की ज्‍यादा संभावना होती है। इस बीमारी के होने पर आदमी का व्‍यवहार बदल जाता है और याद्दाश्‍त भी कमजोर हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अटेंशन डेफिसिट हायपरएक्टिविटी यानी एडीएचडी का मतलब है, किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता का सही इस्तेमाल नहीं कर पाना। माना जाता है कि कुछ रसायनों के इस्तेमाल से दिमाग की कमज़ोरी की वजह से ये कमी होती है। एडीएचडी होने के क्या कारण है-एडीएचडी के कारण और जोखिम कारक अज्ञात हैं, फ़िलहाल तक इसके मूल कारणों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। लेकिन वर्तमान समय में कुछ जारी शोधों से जानकारी मिली है कि एडीएचडी होने का मूल कारण आनुवंशिकी हैं। अब तक किये गये शोधों के अनुसार एडीएचडी होने के मुख्य कारण निम्नलिखित :-
• दिमाग की चोट
• जन्म के बाद मस्तिष्क का ठीक से विकास न होना
• समय से पहले डिलीवरी
• जन्म के समय कम वजन
• बच्चे को मिरगी के दौरे आना
• अगर परिवार में पहले किसी को एडीएचडी की समस्या है तो बच्चे को होना
• गर्भावस्था के दौरान मस्तिष्क ठीक से विकसित न होना
• गर्भावस्था के दौरान शराब और तंबाकू का सेवन
• गर्भावस्था के दौरान या कम उम्र में पर्यावरणीय जोखिमों के संपर्क में आनाएडीएचडी के लक्षण -बच्चों को कभी न कभी ध्यान केंद्रित करने और ठीक से व्यवहार करने में परेशानी होना सामान्य बात है। हालांकि, एडीएचडी वाले बच्चे न केवल इन व्यवहारों से बढ़ते हैं। यह शारीरिक समस्या होने पर इसके लक्षण उम्र भर जारी रह सकते हैं, लक्षण गंभीर से सामान्य हो सकते हैं, और स्कूल में, घर पर या दोस्तों के साथ कठिनाई पैदा कर सकते हैं। इसके अलावा निम्नलिखित लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं :-
• कल्पना, सपनो और ख्यालों में खोएं रहना
• काफी बार चीजों को भूल जाना
• फुसफुसाहट और फिजूलखर्ची ज्यादा करना
• बहुत अधिक बोलना या बिलकुल न बोलना
• लापरवाह गलतियाँ करें या अनावश्यक जोखिम उठाएं
• प्रलोभन का विरोध करने में कठिनाई होना
• मोड़ लेने में परेशानी होती है
• दूसरों के साथ मिलने में कठिनाई होती है
• स्कूल और घर पर लापरवाही से ढेरों मामुली सी गलतियां करना।
• बच्चे द्वारा निर्देशों का पालन ना करना, उन्हें न सुनना और न ही उन पर ध्यान देना।
• किसी भी कार्य को सही ढंग से ना करना।
• नोटबुक व होमवर्क आदि भूल जाना।
• बातें भूलना व बहुत ज्यादा चंचल होना।
• एक जगह पर ना बैठ पाना, व्याकुल रहना।
• अपनी बारी का इंतज़ार ना कर पना, संयम ना रख पाना।
• अक्सर क्लास में चिल्लाना।एडीएचडी के प्रकार-
, एडीएचडी यानि अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर तीन प्रकार का होता हैं, जिन्हें निम्न वर्णित किया गया है।
असावधान – इसमें व्यक्ति के लिए किसी कार्य को व्यवस्थित करना या समाप्त करना, विवरणों पर ध्यान देना, या निर्देशों या वार्तालापों का पालन करना कठिन होता है। व्यक्ति आसानी से विचलित हो जाता है या दैनिक दिनचर्या का विवरण भूल जाता है। इस दौरान निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं :-
• जल्दी ऊब जाना
• किसी बात को न सुनना
• निर्देशों का पालन करने में परेशानी होती है
• किसी एक कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है
• विचारों को व्यवस्थित करने और नई जानकारी सीखने में कठिनाई होती है
• किसी कार्य को पूरा करने के लिए आवश्यक पेंसिल, कागज़ात या अन्य सामान खोना
• धीरे-धीरे आगे बढ़ें और ऐसा प्रतीत हो जैसे वे दिवास्वप्न देख रहे हों
• जानकारी को दूसरों की तुलना में अधिक धीरे और कम सटीक रूप से संसाधित करेंमुख्य रूप से अतिसक्रिय-आवेगी प्रस्तुति – इस प्रकार के एडीएचडी को आवेग और अति सक्रियता के लक्षणों की विशेषता है। इस प्रकार के लोग असावधानी के लक्षण दिखाई दे सकते हैं, लेकिन रोगी में निम्नलिखित लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं :-
• स्थिर बैठने में कठिनाई होना
• लगातार बात करना
• लगातार चलते रहना
• हमेशा अधीर बने रहना
• उत्तर और अनुचित टिप्पणियों को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करना करें
• हाथ में काम के लिए अनुपयुक्त होने पर भी वस्तुओं को छूना और खेलना
• शांत गतिविधियों में शामिल होने में परेशानी होती है।संयुक्त प्रस्तुति – संयुक्त प्रस्तुति होने पर रोगी को एडीएचडी के उपरोक्त दो प्रकार के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। इसके साथ ही यह लक्षण बढ़ भी सकते हैं और कम भी हो सकते हैं। एडीएचडी -अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डरएडीएचडी अर्थात अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर, दिमाग से संबंधित विकार है जो बच्‍चों और बड़ों दोनों को होता है। लेकिन बच्‍चों में इस रोग के होने की ज्‍यादा संभावना होती है। इस बीमारी के होने पर आदमी का व्‍यवहार बदल जाता है और याद्दाश्‍त भी कमजोर हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अटेंशन डेफिसिट हायपरएक्टिविटी यानी एडीएचडी का मतलब है, किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता का सही इस्तेमाल नहीं कर पाना। माना जाता है कि कुछ रसायनों के इस्तेमाल से दिमाग की कमज़ोरी की वजह से ये कमी होती है। एडीएचडी होने के क्या कारण है-एडीएचडी के कारण और जोखिम कारक अज्ञात हैं, फ़िलहाल तक इसके मूल कारणों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। लेकिन वर्तमान समय में कुछ जारी शोधों से जानकारी मिली है कि एडीएचडी होने का मूल कारण आनुवंशिकी हैं। अब तक किये गये शोधों के अनुसार एडीएचडी होने के मुख्य कारण निम्नलिखित :-
• दिमाग की चोट
• जन्म के बाद मस्तिष्क का ठीक से विकास न होना
• समय से पहले डिलीवरी
• जन्म के समय कम वजन
• बच्चे को मिरगी के दौरे आना
• अगर परिवार में पहले किसी को एडीएचडी की समस्या है तो बच्चे को होना
• गर्भावस्था के दौरान मस्तिष्क ठीक से विकसित न होना
• गर्भावस्था के दौरान शराब और तंबाकू का सेवन
• गर्भावस्था के दौरान या कम उम्र में पर्यावरणीय जोखिमों के संपर्क में आनाएडीएचडी के लक्षण -बच्चों को कभी न कभी ध्यान केंद्रित करने और ठीक से व्यवहार करने में परेशानी होना सामान्य बात है। हालांकि, एडीएचडी वाले बच्चे न केवल इन व्यवहारों से बढ़ते हैं। यह शारीरिक समस्या होने पर इसके लक्षण उम्र भर जारी रह सकते हैं, लक्षण गंभीर से सामान्य हो सकते हैं, और स्कूल में, घर पर या दोस्तों के साथ कठिनाई पैदा कर सकते हैं। इसके अलावा निम्नलिखित लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं :-
• कल्पना, सपनो और ख्यालों में खोएं रहना
• काफी बार चीजों को भूल जाना
• फुसफुसाहट और फिजूलखर्ची ज्यादा करना
• बहुत अधिक बोलना या बिलकुल न बोलना
• लापरवाह गलतियाँ करें या अनावश्यक जोखिम उठाएं
• प्रलोभन का विरोध करने में कठिनाई होना
• मोड़ लेने में परेशानी होती है
• दूसरों के साथ मिलने में कठिनाई होती है
• स्कूल और घर पर लापरवाही से ढेरों मामुली सी गलतियां करना।
• बच्चे द्वारा निर्देशों का पालन ना करना, उन्हें न सुनना और न ही उन पर ध्यान देना।
• किसी भी कार्य को सही ढंग से ना करना।
• नोटबुक व होमवर्क आदि भूल जाना।
• बातें भूलना व बहुत ज्यादा चंचल होना।
• एक जगह पर ना बैठ पाना, व्याकुल रहना।
• अपनी बारी का इंतज़ार ना कर पना, संयम ना रख पाना।
• अक्सर क्लास में चिल्लाना।एडीएचडी के प्रकार-
, एडीएचडी यानि अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर तीन प्रकार का होता हैं, जिन्हें निम्न वर्णित किया गया है।
असावधान – इसमें व्यक्ति के लिए किसी कार्य को व्यवस्थित करना या समाप्त करना, विवरणों पर ध्यान देना, या निर्देशों या वार्तालापों का पालन करना कठिन होता है। व्यक्ति आसानी से विचलित हो जाता है या दैनिक दिनचर्या का विवरण भूल जाता है। इस दौरान निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं :-
• जल्दी ऊब जाना
• किसी बात को न सुनना
• निर्देशों का पालन करने में परेशानी होती है
• किसी एक कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है
• विचारों को व्यवस्थित करने और नई जानकारी सीखने में कठिनाई होती है
• किसी कार्य को पूरा करने के लिए आवश्यक पेंसिल, कागज़ात या अन्य सामान खोना
• धीरे-धीरे आगे बढ़ें और ऐसा प्रतीत हो जैसे वे दिवास्वप्न देख रहे हों
• जानकारी को दूसरों की तुलना में अधिक धीरे और कम सटीक रूप से संसाधित करेंमुख्य रूप से अतिसक्रिय-आवेगी प्रस्तुति – इस प्रकार के एडीएचडी को आवेग और अति सक्रियता के लक्षणों की विशेषता है। इस प्रकार के लोग असावधानी के लक्षण दिखाई दे सकते हैं, लेकिन रोगी में निम्नलिखित लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं :-
• स्थिर बैठने में कठिनाई होना
• लगातार बात करना
• लगातार चलते रहना
• हमेशा अधीर बने रहना
• उत्तर और अनुचित टिप्पणियों को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करना करें
• हाथ में काम के लिए अनुपयुक्त होने पर भी वस्तुओं को छूना और खेलना
• शांत गतिविधियों में शामिल होने में परेशानी होती है।संयुक्त प्रस्तुति – संयुक्त प्रस्तुति होने पर रोगी को एडीएचडी के उपरोक्त दो प्रकार के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। इसके साथ ही यह लक्षण बढ़ भी सकते हैं और कम भी हो सकते हैं। एडीएचडी का निदान-एडीएचडी से निदान के लिए कोई एक परीक्षण नहीं है। इसके लक्षणों के आधार पर ही इस बीमारी का निदान संभव है। अगर आपके बच्‍चे का व्‍यवहार इस बीमारी से मेल करता है तो इस आधार पर इस विकार का निदान होता है। इसके लिए विशेषज्ञ बच्‍चे की मेडिकल हिस्‍ट्री की जांच कर सकता है, वह परिवार के अन्‍य सदस्‍यों से इस बारे में पूछ सकता है। इसके अलावा चिकित्‍सक यह भी देखता है कि बच्‍चे को कोई अन्‍य परेशानी तो नही है जिसके कारण वह ऐसा व्‍यवहार कर रहा है। इसके बाद सुनने और देखने की क्षमता, चिंता, अवसाद या अन्य व्यवहार समस्याओं की जांच की जाती है। इसके लिए अपने बच्चे को एक विशेषज्ञ (आमतौर पर मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक या न्यूरोलॉजिस्ट) के पास परीक्षण के लिए भेजिए। इसमें बच्‍चे का आईक्‍यू लेवल की भी जांच होती है।
अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे को एडीएचडी है, तो इस बारे में तुरंत एक पंजीकृत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर अपनी जांच में बक्स की दृष्टि और श्रवण जांच कर सकते हैं और साथ ही बच्चे की मानसिक स्थिति की जांच भी कर सकते हैं, जिससे इस बात की पुष्टि की जा सके कि बच्चे में एडीएचडी की समस्या है या नहीं। इस दौरान डॉक्टर बच्चे में लक्षणों की पहचान भी कर सकते हैं, जिसके लिए वह बच्चे को अपनी निगरानी में भी रख सकते हैं।
निदान के दौरान अगर माता पिता डॉक्टर की ठीक से मदद करे और डॉक्टर को बच्चे की उचित जानकारी दें तो उससे उपचार में काफी सहायता मिलती है। अगर बच्चा स्कूल में जाता है तो इस दौरान अध्यापक भी उपचार में काफी सहायता प्रदान कर सकते हैं। लेकिन सबसे जरूरी है कि डॉक्टर को उचित और पूरी जानकारी प्रदान की जाए।
बच्चे की जानकारी प्राप्त करने के बाद डॉक्टर निम्नलिखित चिकित्सीय जानकारी भी लेते हैं :
• मधुमेह स्तर
• रक्तचाप की जानकारी
• रक्त संबंधित जांच
• पाचन तंत्र संबंधित जानकारी
• मस्तिष्क का एमआरआई और सीटी स्कैन
इन सभी के अलावा डॉक्टर जरूरत पड़ने पर बच्चे की और भी कई जरूरी जांच करवा सकते हैं। भारत में एडीचडी बच्चों की संख्या-
एक अनुमान के मुताबिक स्‍कूल के बच्‍चों को एडीएचडी 4% से 12% के बीच प्रभावित करता है। यह लड़कियों की तुलना में लड़कों को ज्यादा होता है। अध्ययन के मुताबिक पिछले 20 वर्षों में एडीएचडी के मरीजों की संख्‍या लगातार बढ़ रही है। लेकिन इस बीमारी के बढ़ने का कारण यह भी है कि इसका निदान अधिक लोगों में हो रहा है। बच्चों और बड़ों में इस रोग के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैंएडीएचडी का इलाज कैसे किया जाता है-अगर बच्चे में एडीएचडी होने की पुष्टि होती है निम्नलिखित प्रकार से बच्चे का उपचार किया जा सकता है :-
• दवाएं – यह मस्तिष्क की ध्यान देने, धीमा करने और अधिक आत्म-नियंत्रण का उपयोग करने की क्षमता को सक्रिय करता है।
• व्यवहार चिकित्सा – चिकित्सक बच्चों को सामाजिक, भावनात्मक और नियोजन कौशल विकसित करने में मदद कर सकते हैं।
• अभिभावक कोचिंग – कोचिंग के माध्यम से बच्चों के प्रति माता-पिता के व्यवहार को बदलने की कोशिश की जाती है। क्योंकि अक्सर देखा गया है कि ऐसे बच्चों के साथ माता पिता और अन्य परिवार वाले ठीक से व्यवहार नहीं करते।
• स्कूल का समर्थन – शिक्षक एडीएचडी वाले बच्चों पर ज्यादा ध्यान दे सकते हैं और उन्हें हमेशा खास और सभी के साथ घुलने-मिलने में मदद कर सकते हैं।
• यदि शिक्षक आपको सूचित करें कि आपके बच्चे को पढ़ने में दिक्‍कत है, इसका व्‍यवहार अन्‍य बच्‍चों से अलग है और ध्‍यान देने में दिक्‍कत होती है तो विशेषज्ञ से संपर्क करें। एडीएचडी की समस्या बच्चों में कोई साधारण बात नहीं है बल्कि एडीएचडी के लक्षण दिखाई देने पर माता-पिता को जल्द से जल्द मनोचिकित्सक की सलाह लेनी जरूरी है। बच्चों में इस समस्या को दूर करने के लिए मेडिसीनल ट्रीटमेंट दिया जा सकता हैं
• बिहेवियर थैरेपी के जरिए भी इसका उपचार किया जाता है। साथ ही एतियात के तौर पर बच्चों के कमरे में कम से कम चीजें रखें ताकि उनका मन ज्यादा न भटके। उन्हें काम के बदले सराहें और रिवार्ड दें। जैसे होमवर्क करने पर उनका मनपसंद का खाना आदि दें। उनके साथ मारपीट बिल्कुल नहीं करनी चाहिए। यदि वह कोई गलती करता है तो उसे संयम और सूझ-बूझ के साथ समझाने की कोशिश करनी चाहिए कि उसने जो किया है वह गलत है।

By: Noopur Chauhan,

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