सेरेब्रल पाल्सी : कहानी एक उम्दा परवरिश और आत्मविश्वास की

सेरेब्रल पाल्सी : कहानी एक उम्दा परवरिश और आत्मविश्वास की

नमस्कार आज एक बार फिर हम आप लोगों के साथ बात करने आए हैं अपने पिछले लेख में आप लोगों से सेरेब्रल पाल्सी के विषय में बात की थी। आज हम ये कहना चाहते है की जिन बच्चों को सेरेब्रल पाल्सी हैं उन्हें और उनके माता-पिता को बिल्कुल निराश  होने की जरुरत नहीं हैं।

आज हम आप सब को एक ऐसे परिवार से मिलवाएंगे जिनकी इच्छाशक्ति और मेहनत ने अपनी बेटी को उड़ान भरने के लिए खुला आसमान दिया।  आइये अब मिलते हैं एक ऐसी लड़की से जो सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित मेरी जैसी हज़ारों लड़कियों को रोज़ प्रेरित करती हैं ,वो जिसने अपनी हिम्मत से अपना नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज़ करा लिया –

Yashi Kumari

   यशी कुमारी जन्म से ही सेरेब्रल पाल्सी नामक ऐसी बीमारी से ग्रसित थी,  जो लाइलाज मानी जाती हैं। उनका परिवार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में रहता हैं।  यशी के पिता मनोज कुमार सिंह ऑटो ड्राइवर थे।  उनका परिवार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में रहता हैं।उनका परिवार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में रहता हैं। सात बरस की उमर तक उसके हाथ-पांव काम नहीं करते थे और वह पूरे वक्त बिस्तर पर ही पड़ी रहती थी। यशी कुमारी जन्म से ही सेरेब्रल पाल्सी नामक ऐसी बीमारी से ग्रसित थी  भारत में पूरी तरह लाइलाज मानी जाती थी।  यशी के पिता मनोज कुमार सिंह ऑटो ड्राइवर थे. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। फिर भी  पिता मनोज ने ऑटो से होने वाली कमाई से यशी का इलाज कराने में कोई  कसर नहीं छोड़ी, इसके बावजूद उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा थी। वह जन्म से सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित थी। बचपन में यशी को कभी- कभी ज़िन्दगी से शिकायत होने  लगने लगती थी। हालांकि दिन भर बिस्तर पर पड़े रहने के बावजूद यशी ने कभी हिम्मत नहीं हारी. वह अपनी कमजोरी को ही ताकत बनाना चाहती थी। बहुत जगह इलाज कराने के बाद उसका परिवार उसके इलाज के लिए अपने शहर के एक प्रतिष्ठित डॉक्टर के पास पहुंचे। उनसे इलाज शुरू होने के बाद उसे आराम मिलने लगा। उसके परिवार ने उसे स्कूल में एडमिशन दिलाया। उसने खूब मन लगाकर पढ़ना शुरू किया और हमेशा हर परीक्षा में प्रथम आती थी। धीरे -धीरे उसे डॉक्टर के इलाज से बहुत आराम मिला और वह अपनी हिम्मत और परिवार के साथ के बल पर आगे बढ़ने लगी । उसने  जीवन की परीक्षा को सदा अपनी मेहनत और हिम्मत से उत्तीर्ण किया जो बच्ची आज सबकी प्रेरणा है उसने कभी अपने रिश्तेदारों और समाज के तानो का सामना किया लेकिन उसने हार नहीं मानी बारहवीं की परीक्षा गोरखपुर के एक स्कूल से पास करने के बाद वे देश की प्रतिष्ठित मेडिकल प्रवेश परीक्षा में बैठी और उसने पहले प्रयास में परीक्षा को उत्तीर्ण करके दिखाया। आज उसे कोलकाता के मेडिकल कॉलेज के अंदर  एमबीबीएस में एडमिशन मिला उसने न सिर्फ ये परीक्षा पास की बल्कि पूरे देश में इसकी मेरिट में स्थान बनाया। यहाँ तक पहुंचने के लिए उसने अनेक मुश्किलों को पार किया हैं।  अपनी सफलता के पश्चात दिए गए एक साक्षात्कार में यशी ने बताया कि स्कूल के अध्यापक शारीरिक अक्षमता के चलते उसे ना तो कभी किसी भी गतिविधि  में शामिल होने देते थे। इन्ही भेदभावों को सहते हुए उसने ये निश्चय किया कि वो एक डॉक्टर बनेगी और अपने जैसे अन्य बच्चों कि सेवा कर उन्हे ठीक  करेगी और ये प्रेरणा उसे मिली अपने डॉक्टर श्री जितेंद्र जैन जी जिन्होंने उसे ठीक किया। यशी मिसाल है एक परिवार की अनवरत तपस्या और एक माता – पिता की निष्ठा की। ये बच्ची प्रतिमूर्ति है अदम्य साहस की। यशी की सफलता के लिए इतिहास हमेशा डॉक्टर जितेंद्र जैन को याद रखेगा जिनकी कर्त्तव्यनिष्ठा ने एक बच्ची का जीवन बदल दिया।

इस लेख के अंत में हम इस समाज से एक बात कहना चाहेंगे कि माना यशी और नूपुर जैसी लड़कियों को आप विकलांग और कमज़ोर कहते और मानते हैं पर यकीन मानिये हम आपकी सहानुभूति और दया नहीं चाहिए हम तो  वो शेरनियाँ हैं जो अपनी हिम्मत और मेहनत के दम पर इस दुनिया के जंगल में दहाड़ेगी और अपने हिस्से की ज़मीन , आसमान और  सम्मान हासिल करेगी ।

Article by: Noopur Chauhan, Jr. Editor, Ability India, Kanpur, UP

Feature Photo: https://www.physioline.in/cerebral-palsy-2/

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