ऑटिस्टिक बच्चे और उनकी परवरिश..

ऑटिस्टिक बच्चे और उनकी परवरिश..

अपने पिछले लेख में हमने आटिज्म के विषय में लिखा था आज के लेख में हम इस बीमारी से जुड़े कुछ और तथ्यों तथा ऑटिस्टिक बच्चों की परवरिश के विषय में बात करेंगे और साथ ही आप सब के साथ साझा करेंगे एक ऑटिस्टिक बच्चे सफलता की कहानी।
अपने लेख को आरम्भ करने से पहले हम सभी ऑटिस्टिक बच्चों के माता – पिता से ये कहना चाहेंगे कि अपनी हिम्मत और ज़ज़्बे को बनाये रखे अपने बच्चे को लेकर दुनिया के उपहासों पर ध्यान न दे और सभी को बस एक जवाब दे – “मेरा बच्चा हैं मेरे जीवन के आसमान का सबसे सुंदर तारा, जिसकी चमक एक दिन देखेगा सारा ज़माना “
इस लेख के आरम्भ में सर्वप्रथम हम भारत में ऑटिस्टिक बच्चों की संख्या के विषय में बताएँगे-

भारत में ऑटिस्टिक बच्चों की संख्या-
-आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में हर 500 में से एक बच्चा ऑटिज़म से ग्रसित होता है। भारत में इस समय करीब सवा दो लाख बच्चे ऑटिज़म से पीड़ित हैं और हर साल करीब 12 हजार बच्चे इस बीमारी के रोगियों की सूची में शामिल हो जाते हैं
आटिज्म से संबधित कुछ भ्रांतियां – आटिज्म को लेकर आज भी लोगों में भ्रांतिया बहुत हैं।जिनमे एक सबसे प्रमुख ये हैं कि क्लासिक आटिज्म और एस्परजर्स बीमारी एक ही हैं जबकि ये दोनों अलग हैं आज हम आपको क्लासिक आटिज्म और एस्परजर्स बीमारी के अंतर के विषय में बताएँगे-
ऑटिज्म और एस्परजर्स में अंतर-
१ – एस्पर्जर डिसऑर्डर के रोगी हल्के लक्षण दिखाते हैं और भाषा पर पकड़ रखते हैं, जबकि आटिज्म के रोगियों के साथ ऐसा नहीं होता है।
२ -ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे ज्यादातर खुद को किसी भी सामाजिक संपर्क से अलग कर लेते हैं, लेकिन दूसरी ओर एस्परगर डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चे जानबूझकर इसे बातचीत करने की पहल करते हैं लेकिन असफल हो जाते हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि यह कैसे करना
३ -भले ही एस्परगर के डिसऑर्डर वाले रोगियों में संवाद कौशल कमजोर होता है, लेकिन उनके पास काफी तेज भाषा कौशल होता है। उन्हें संवाद करने में मुश्किल होती है लेकिन वे हास्य या व्यंग्य जैसी सामाजिक भावनाओं का पता लगाते हैं। दूसरी ओर, ऑटिस्टिक रोगियों में खराब भाषा कौशल होता है। वे व्यंग्य और हास्य जैसे अंतर्निहित भावनाओं और पहचान नहीं कर सकते।
अब हम आटिज्म से जुडी एक और भ्रान्ति के विषय में बात करेंगे और वो हैं-
ऑटिज्म हमेशा जेनेटिक होता है-
अध्ययनों ने उन बच्चों में ऑटिज़्म के महत्वपूर्ण निशान दिखाए हैं जिनके माता-पिता अपने परिवारों में ऑटिज्म से पीड़ित थे या चल रहे थे। एएसडी (ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर) के पीछे जेनेटिक्स ने एक बड़ी भूमिका निभाई है, फिर भी इसे साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है। लेकिन ऑटिज्म हमेशा तनाव और नकारात्मक परिवेश जैसे पर्यावरणीय कारकों से उत्पन्न होता है। शोधकर्ताओं ने अक्सर निष्कर्ष निकाला कि ऑटिज्म के मामले में जेनेटिक्स और पर्यावरण साथ-साथ चलते हैं।

आटिज्म से सम्बंधित प्रमुख भ्रांतियों के विषय में बात करने के बाद अब हम ऑटिस्टिक बच्चों की परवरिश को लेकर कुछ बातें बताएँगे-

ऑटिस्टिक बच्चे और उनकी परवरिश

बच्चों की परवरिश के लिए हर माता पिता के लिए तपस्या से कम नहीं होती हैं और ये तपस्या और भी कठिन हो जाती हैं जब बच्चे को आटिज्म होता हैं लेकिन फिर भी माता- पिता को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए वे अपने बच्चे की परवरिश में कुछ बातों को अपनाकर उसके बेहतर भविष्य की नींव को और मजबूत कर सकते हैं-
१- बच्‍चों के साथ संवाद को आसान बनाएं बच्‍चों के साथ धीरे-धीरे और साफ आवाज़ में बात करें ऐसे शब्‍दों का प्रयोग करें जो समझने में आसान हो बच्चे से बातचीत करते समय बार-बार बच्चे का नाम दोहराएं। ताकि बच्चा यह समझ सके कि आप उसी से बात कर रहे हैं।
२- बच्चे को आपकी बात समझने और फिर उसका जवाब देने के लिए पर्याप्त समय लेने दें बातचीत के दौरान हाथों से इशारे करें और तस्वीरों की मदद भी ले सकते हैं
३- ऑटिज़्म वाले बच्चें अक्सर खाने-पीने से आनाकानी करते हैं और किसी विशेष रंग या प्रकार का ही भोजन खाते हैं। वे बहुत अधिक या बहुत कम मात्रा में भी खा सकते हैं। वहीं, उन्हें खाना खाते समय भोजन अटकने या खांसी की समस्याएं भी हो सकती हैं। ऐसे मामलों में अभिभावकों को अपने बच्चे के खाने-पीने से जुड़ी आदतें एक डायरी में लिख कर रखनी चाहिए। ताकि, वे बच्चे की समस्याओं को समझ सकें और उससे बचने के उपाय अपना सकें। इसी तरह बच्चे को अगर खाने में दिक्कत हो तो अपने डॉक्टर से बात करें।
४- ऑटिस्टिक बच्चों में सोने की आदतों को लेकर परेशानी भी देखी जाती हैं अगर आपके ऑटिस्टिक बच्चे को उसकी सोने की आदतों को लेकर कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं तो आप ये उपाय अपना सकती है-
सोते समय बच्चे का कमरा शांत और अंधेरे से भरा हो और साथ ही बच्चे के सोने और जागने का समय निश्चित करें।
५ – कुछ ऑटिस्टिक बच्चों के लिए उनकी भावनाओं को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता हैं और वे अक्सर रो पड़ते हैं। ऐसे बच्चों की मदद करने के लिए माता-पिता बच्चे को मधुर और सूकूनभरा संगीत सुनने दें और बच्चे के कमरे से भड़कीली बत्तियां और बल्ब हटा दें।इसके साथ ही बच्चे की दिनचर्या में किसी प्रकार के बदलाव करने से पहले उन्हें इसकी जानकारी दें।
६- कुछ बच्चे बहुत भावुक और सवेंदनशील होते हैं। ऐसे बच्चे भीड़, शोर और तेज़ रोशनी से घबरा जाते हैं । ऐसे बच्चों के माता-पिता को ऐसी स्थितियों से बचने के लिए इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:
अगर बच्चे को शोर से दिक्कत है तो उसे शोर कम करने वाले हेडफोन या इयरप्लग्स का इस्तेमाल करने दें अगर, बच्चा नयी जगह में सहज नहीं है तो अभिभावक उन्हें उन जगहों पर तब ले जाएं, जब वहां बहुत भीड़ ना हो या शांति हो। फिर, धीरे-धीरे वहां, बच्चे के रहने का समय बढ़ाते जाएं। जिससे, वे सहज हो जाएं।बच्चे की भावनाओं को संभालने के लिए उनके लिए शांत माहौल का निर्माण करें।
ऑटिस्टिक बच्चों की परवरिश के विषय में बात करने के पश्चात अब हम आपको एक ऐसे माता-पिता की कहानी बताएँगे जिन्होंने उनके अडिग विश्वास और अथक परिश्रम से अपने ऑटिस्टिक बच्चे का जीवन बदल दिया-
कहानी अडिग विश्वास की – श्री गुरुदास पटेल और उनकी पत्नी श्वेता पटेल अपने परिवार के साथ पुणे में रहते हैं। उनके दो बेटे है।
उनका परिवार बहुत ख़ुशी से जीवन यापन कर रहा था तभी उन्हें पता चला कि उनके साढ़े पांच साल के बेटे अहान पटेल को आटिज्म हैं तो उन्हें बहुत दुख हुआ लेकिन उन दोनों पति पत्नी ने निश्चय किया की वे दोनों अपने बच्चे को लेकर और उसे सशक्त बनाएंगे उन्होंने अपने बच्चे का बेहतर से बेहतर इलाज कराया अपने बच्चे के इलाज के दौरान जब एक डॉक्टर ने उन्हें बताया कि अहान के ऑटिस्टिक होने के कारण उसे जीवन भर सहारे की जरुरत पड़ेगी तो श्वेता जी ने डॉक्टर जवाब दिया कि वह उनके बच्चे के भविष्य कि चिंता न करे इतना कहकर वह उस डॉक्टर कि क्लिनिक से बाहर आ गयी और तभी उन्होंने निर्णय किया एक दिन पूरी दुनिया उनके बेटे को उसकी काबिलियत के दम पर पहचानेगी
अपने बेटे के इलाज और शिक्षा के लिए दोनों पति -पत्नी बहुत संघर्ष किया लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी उन्होंने अपने बेटे को बेहतरीन
परवरिश दी और उसे सशक्त बनाया। अपने माता- पिता कि तपस्या को सफल करते हुए एक दिन अहान ने वो कर दिखाया जिसके बारे में जानकर हर कोई अचंभित हो गया उसने सीबीएसई टेंथ बोर्ड परीक्षा ७८ % के साथ उत्तीर्ण की परीक्षा उत्तीर्ण करने पश्चात आज भी वह लगातार आगे बढ़ रहा हैं कि जिस बच्चे के लिए कभी ये कहा गया था कि उसे जीवन भर एक सहारा चाहिए वो आज दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गया।

लेखिका : नूपुर चौहान , कानपूर , उत्तर प्रदेश (Editor, Ability India)

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Font Resize