एडीएचडी बच्चों की परवरिश कैसे करें…

एडीएचडी बच्चों की परवरिश कैसे करें…

हर माता – पिता अपने बच्चे को बेहतर से बेहतर परवरिश देते है पर अगर उनके बच्चे के साथ कुछ समस्या हो तो  समाज और लोगो कि  संकिर्ण मानसिकता उनके परवरिश और जीवन को कठिन बनाते है जिससे न सिर्फ माता – पिता को परेशानी होती है बल्कि उनके बच्चे का विकास भी प्रभवित होता है  आज अपने इस लेख में हम बात करेंगे कि किस प्रकार कि  परवरिश से माता – पिता अपने ए डी एच डी से ग्रसित बच्चों के जीवन को सरल बना सकते हैं।

 बच्चे की  ए डी एच डी  समस्या को दुश्मन बनाइये – बच्चे को नहीं। कुछ आसन नियमों के दुवारा आप अपने बच्चे के मुश्किल स्वाभाव को नियंत्रित कर सकती हैं। ए डी एच डी बच्चों की  परवरिश के लिए माँ-बाप को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

अधिकांश माँ-बाप अपने बच्चों को बेहतर तरह से संभल लेते हैं। लेकिन अगर आप के बच्चे को ध्यान केंद्रित करने से सम्बंधित समस्या है जैसे कि ए डी एच डी तो फिर सिर्फ बेहतर होने से काम नहीं चलेगा।

इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कि  आप का बच्चा खुश रहे, मौजूद वातावरण में अपने आप को सरलता से ढाल सके और घर के माहौल को उसके अनुकूल बनाने के लिए आप को केवल एक बेहतर माँ-बाप ही नहीं वरन उससे कहीं ज्यादा बढ़कर बनना होगा। ख़ुशी की बात ये है कि  ये सब उतना मुश्किल नहीं है जितना कि आप को लग रहा होगा। दैनिक रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ छोटे-मोठे बदलाव करके आप अपने बच्चे के लिए घर पे उचित माहौल तैयार कर सकती हैं। 

1. हकीकत को अपनाइये-

हर बच्चे में कुछ न कुछ कमी होती है और उसमे कोई न कोई ताकत होती है। कोई माँ-बाप अपने बच्चे कि  कमी को देखना नहीं चाहते हैं। लेकिन इस सच्चाई को अपनाने में आप जितना आप देर करेंगी उतना नुकसान  आप के बच्चे का होगा। अगर आप के बच्चे को ए डी एच डी है तो निराश नहीं हों। आप के बच्चे में कोई कमी नहीं है। लेकिन बस अंतर इतना है कि  उसके मस्तिष्क के काम करने का तरीका दूसरे  बच्चों से अलग है। यही उसकी  ताकत है और उसकी  कमजोरी भी। अगर आप चाहती हैं कि आप का बच्चा दूसरे  बच्चों की  तरह आत्मविश्वासी  बने तो आप को उसकी  कमजोरियोँ को नजरअंदाज करना पड़ेगा। ए डी एच डी बच्चों की  जिन कमजोरियोँ पे आप को झुंझुलाहट हो या गुस्सा आये, उनपर बच्चों का कोई अधिकार ही नहीं होता है। यही कारण है कि  आप इन बच्चों को डांट के ठीक नहीं कर सकती हैं। लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि  डांटने से इन बच्चों का मनोबल कम हो जाता है। और ये दूसरे  बच्चों से अपने आप को कम महसूस करने लगते हैं। सच बात तो ये है कि  इन बच्चों में असीम ऊर्जा होती है, तथा रचनात्मक और पारस्परिक कौशल में इन बच्चों का कोई मुकाबला नहीं होता है। अपने बच्चे की कमजोरी की  बजाये उसकी ताकत को देखिये। आप के बच्चे के लिए वो सब मुमकिन है जो दूसरे  शांत स्वाभाव के और ज्यादा समझदार दिखने वाले बच्चों के लिए मुमकिन नहीं है। ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जहाँ बहुत ऊर्जा की जरुरत पड़ती है और  रचनात्मक दृष्टिकोण की  जरुरत। ऐसे क्षेत्रों में ये बच्चे सफलता की बुलंदियों को छूते हैं। अपने बच्चे की  काबिलियत पे विश्वास  कीजिये  और उसके साथ वैसा ही बर्ताव  कीजिये । 

2. बच्चे की  शिकायतों को नजरअंदाज कीजिये –

सुनने में ये शायद आप को अटपटा लगे लेकिन अगर आप चाहती हैं कि  आप का बच्चे का विकास दूसरे  सामान्य बच्चों की  तरह हो तो स्कूल से मिलने वाली बहुत सी शिकायतों को नजरअंदाज करने की  आदत डाल लीजिये । उदहारण के लिए अगर आप के बच्चे कि  टीचर या स्कूल के दूसरे  कर्मचारी ये कहते हैं कि  आप का बच्चा पढाई में मन नहीं लगता है या पढाई में कमजोर है तो बच्चे को डांटे नहीं। आप अपनी तरफ से वो सबकुछ करिये जो कर सकती हैं कि  आप का बच्चा पढाई में अच्छे नंबर ला सके। लेकिन अगर वो पढाई में अच्छा नहीं करता है तो उसे डांटिए भी नहीं। डांटने से किसी भी बच्चे की  ए डी एच डी की समस्या समाप्त नहीं होती है। हाँ, समस्या बढ़ जरूर सकती है। आप का कदम समस्या घटाने का होना चाहिए, बढ़ने का नहीं। अपने बच्चे से कोई ऐसी बात न करें कि  उसमे हीन भावना पनपे, या उसे शर्मिंदा महसूस होना पड़े। आप का बच्चा पहले से ही ए डी एच डी की   समस्या से जूझ रहा है। आप उसके साथ अगर कड़ा रुख अपनाएंगी तो उसे लगेगा कि  कोई भी उस की  समस्या को समझ नहीं सकता है। पढाई में आप के बच्चे को ज्यादा सहारे कि  जरुरत है (लेकिन प्यार से)। दूसरे  बच्चों के मुकाबले अगर इन बच्चों ज्यादा पढाई में सपोर्ट मिले तो ये बच्चे बेहतर प्रदर्शन करना सिख लेते हैं। जिस तरह से अस्थमा से पीड़ित बच्चे को साँस लेने में सहायता की    आवश्यकता पड़ती है, और जिस तरह से मधुमेह के मरीज को इन्सुलिन के सहारे की जरुरत पड़ती है – ठीक उसी तरह से ए डी एच डी बच्चे को सीखने में मदद की    जरुरत पड़ती है। जरुरी नहीं कि  आप के बच्चे का  बुद्धि स्तर   कम है, हो सकता है कि  उसका बुद्धि स्तर   दूसरे  बच्चों से ज्यादा ही हो। बस अंतर इस बात का है कि  इन बच्चों के दिमाग के काम करने का तरीका दूसरे  बच्चों से अलग है।

3. दवाओं के महत्व को जरुरत से ज्यादा न आंके-

इसमें कोई दो राय नहीं है कि ए डी एच डी बच्चों के लिए दवाएं बहुत महत्वपूर्ण है। सही दवाओं के मिलने पे ये बच्चों कि  ए डी एच डी की  समस्या को बहुत हद तक कम कर देती हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि  आप अपने बच्चे को दूसरे  बच्चों कि  तरह तुलना करना शुरू कर दें। उदाहरण के लिए अगर आप का बच्चा उन चीज़ों को बार बार करता है जिन्हे कि  आप उसे करने के लिए मन किये हैं तो दवा देने के बाद आप ये न समझे कि  अब आप का बच्चा आप की बात मानने लगेगा। समस्या बात मानने या न-मानने कि  नहीं है। दवा कुछ समय के लिए बच्चे के बर्ताव को नियंत्रित करेगा। उसके  ए डी एच डी की  समस्या को समाप्त नहीं करेगा। आप दवाओं के डोज़ को कभी न बढ़ाएं। आप का यह सोचना कि  दवाओं के डोज़ को बढ़ा देने से सारी समस्या समाप्त हो जाएगी, गलत है। आप कभी भी बच्चों को दवाओं को ले कर धमकियाँ न दें। उन्हें ये न बोलें कि  अगर वे बात नहीं मानेंगे तो आप उनकी  दवा का डोज़ बढ़ा देंगे। इससे बच्चे के मस्तिष्क को गलत सन्देश मिलता है। आप के बच्चे के मन में यह भावना पनपेगी कि  वो दूसरे  बच्चों की तरह सामान्य नहीं है। दवा ए डी एच डी बच्चे के अंदर के अच्छे व्यवहार को उभारता है लेकिन सारी समस्या को जादुई तरीके से समाप्त नहीं कर देता है। 

4. अनुशासन और सजा के भेद को समझे-

क्या आप ने कभी किसी अभिभावक को यह शिकायत करते सुना है कि  मैं अपने बच्चे को डांटी, मारी, उस पे चिल्लाई, रोई, यहां तक कि  प्यार से अनुरोध तक किया लेकिन बच्चे पे कोई फर्क नहीं पड़ा  समस्या यहीं पे है। जो सबसे कारगर तरीका है, उसके बारे में तो आप ने सोचा भी नहीं। – बच्चे में जो भी थोड़ा बहुत अच्छी बातें हैं उसके लिए कभी प्रोत्साहित नहीं किया गया, उसकि  कभी भी तारीफ नहीं की  गयी। सिर्फ डांटने से बच्चे को लगेगा कि  यही तरीका है बड़ों के बर्ताव करने का। लेकिन जो मुख्य बात है वो बच्चा कभी नहीं सीखेगा। मुख्य बात है बच्चे में गलत और सही का भेद करना सीखना। इस बात का एहसास होना कि  उनके काम का बड़ों के व्यहार पे प्रभाव पड़ता है। जब वे अच्छा काम करते हैं तो बड़ों पे उसका अच्छा प्रभाव पड़ता है और जब वे बुरा काम करते हैं तो वो काम बड़ों को पसंद नहीं आता है। इस तरह से कुछ समय बाद बच्चे अच्छे और बुरे काम में भेद करना सीख जाते हैं। सजा का अपना एक महत्व है। लेकिन सजा कभी भी मारने या डांटने के रूप में न हो। यह हमेशा आखरी रास्ता हो। ए डी एच डी बच्चे के स्वाभाव को नियंत्रित करने और उन्हें अनुशासित करने का सबसे बढ़िया तरीके है कि  उन की  उम्र के अनुसार उन्हें ऐसे लक्ष्य दिए जाएँ जो वे आसानी से पूरा कर सके। पूरा करने पर आप उन्हें इनाम दें जिससे कि  उन्हें प्रोत्साहन मिले। उन्हें लगे कि  उन्होंने कुछ हासिल किया है । 

5. बच्चे को उसकी समस्या के लिए दण्डित न करें-

अपने बच्चे को उसकी  ए डी एच डी  समस्या से उपजे व्यवहार के लिए सजा न दें। आप को यह समझने कि  आवश्यकता है कि  उसका यह व्यवहार उस  नियंत्रण से बाहर है। क्या यह उचित होगा कि  आप 10 साल के बच्चे को बोलें कि  वह अपना बिस्तर खुद बनाये? अब कल्पना कीजिये  कि  कुछ समय बाद आप बच्चे को बिना बने बिस्तर पे खेलते हुए पाएं, तो क्या यह उचित होगा कि  आप उसे डांटे? ठीक उसी तरह जिस तरह बच्चे कि  उम्र के अनुसार आप उससे उपेक्षा करती हैं, बच्चे की ए डी एच डी समस्या को ध्यान में रख कर आप उससे उपेक्षा करें। जो व्यवहार उसकी  नियंत्रण में नहीं है उसके लिए आप उसे न डांटे। ए डी एच डी  समस्या से ग्रसित बच्चे इसलिए आप कि  बात को नजर अंदाज नहीं कर देते हैं कि  वे जिद्दी है – बल्कि वे आप  बात को मानने से चूक जाते हैं क्योँकि उनकि  समस्या ये है कि  उनका ध्यान बहुत जल्दी और बहुत आसानी से भटक जाता है। उनका यह स्वाभाव उनकि  नियंत्रण से बाहर है। उसकि  इस व्यवहार के लिए जब आप उसे बार-बार सजा देती हैं तो कुछ समय बाद आपकी  आज्ञा मानने की  उनकी  इच्छा  समाप्त हो जाती है। आप से अच्छे व्यवहार की  उनकी उम्मीद भी ख़त्म हो जाती है। ऐसी स्थिति का सबसे अच्छा हल ये है कि  आप बस अपने बच्चे को फिर से याद दिला दें। 

6. अपने बच्चे के व्यवहार के लिए दूसरों को दोष न दें-

क्या आप ने कभी किसी माँ को यह कहते सुना है कि अगर टीचर बच्चों को अनुशाशन में रखना जानती तो हमारी बच्ची नहीं बिगड़ती, या स्कूल बस का ड्राइवर बच्चों को नियंत्रित करना नहीं जनता है। अगर आप अपने बच्चे की  गलतियोँ के लिए दूसरों पे दोषारोपण करती रहेंगी तो आप के बच्चे पे इसका गलत असर पड़ेगा।आप के बच्चे को लगेगा कि  गलतियों को क्योँ सुधारा जाये जबकी यह बड़ों की  जिम्मेदारी है। आप का बच्चा अपने सारी गलतियोँ के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराना सीखेगा। और वो ये सब सीखेगा आप से।

7. बच्चे को कभी बुरा-भला न कहें-

अगर आप हर समय बच्चे को कोसती रहेंगी तो आप का बच्चा आपकी   बात पे विश्वास करना शुरू कर देगा। आप चाहे कितना भी परेशां हो, अपने बच्चे को कभी भी आलसी न कहें। बच्चे को कुछ भी ऐसा न कहें जिससे कि  उसका मनोबल कम हो। उदाहरण के लिए अपने बच्चे को यह कहने कि  बजाये कि  “तुम कितने आलसी हो  कि  तुम अपना कमरा भी साफ नहीं कर सकते” यह कहिये “तुम्हारा कमरा कितना गन्दा हो गया है, मुझे डर  है कि  कहीं तुम खिलौनों पे फिसल के गिर न जाओ – चलो मिल कर ठीक करते हैं”। चाहे आप के बच्चे का व्यवहार कितना भी निराशाजनक क्योँ न हो – आप को इस बात का ध्यान रखना है कि  ए डी एच डी समस्या है – आप का बच्चा नहीं। आप को अपने बच्चे के साथ मिल कर उसकी   इस समस्या से लड़ना है। 

8. तुरंत “न” नहीं कहें-

कुछ माँ-बाप आदतन बच्चे कि  हर बात को “ना” कह कर टाल देते हैं। वे यह जानने   की जेहमत नहीं उठाते हैं कि  जो बच्चा कह रहा है उसमे हाँ कहने से कोई हानि  नहीं है। इसका नतीजा यह होता है कि  जो बच्चे आवेग में आ कर काम करते हैं जैसे कि  ए डी एच डी की   समस्या से ग्रसित बच्चे, वे माँ-बाप कि  बातों का विद्रोह करना सीख जाते हैं। बच्चे कि  हर बात का उत्तर “ना” में नहीं दें। अगर आप का बच्चा कुछ करने के लिए आप कि  आज्ञा मांगे तो आप उसे ” हाँ ” में उत्तर दें। केवल उन कामों के लिए ” ना ” कहें जिन्हे करने से कोई खतरा हो। आप अपनी विवेक का भी इस्तेमाल कर सकती हैं। उदहारण के लिए अगर आप का बच्चा बाहर जो कर खेलना चाहता है। मगर आप चाहती है कि  वो बैठकर अपना होमवर्क पूरा करे। ऐसी स्थिति में ” नहीं ” कहने कि  बजाये आप बच्चे के साथ बातचीत से हल नकलें कि  किस तरह उसका खेलना भी हो जाये और उसका होमवर्क भी पूरा हो जाये। इस तरह से आप का बच्चा आपकी  बात मानने में ज्यादा सहयोग करेगा।

 9. बच्चे में मौजूद अच्छे व्यवहार को सराहें-

हर बच्चे में कुछ अच्छाई तो कुछ बुराई होती है। अपने बच्चे कि  बुरी आदतों को ख़तम करने की  होड़ में आप उसकि  अच्छी आदतों को नजरअंदाज न करें। कुछ माँ-बाप को बच्चे में केवल बुराई ही दिखती है। ऐसे बच्चों में कुछ समय के बाद हीन भावना पनपने लगती है। जब आप बच्चे कि  बुरी आदतों के लिए डांटती है तो उसकी  अच्छी आदतों के लिए सराहें भी। इससे आप का बच्चा सीखेगा कि  आप को कौन सी बात अच्छी लगती है और कौन सी बात नहीं।अपने बच्चे के साथ हर दिन कुछ समय हंसी-खेल में बिताएं। 

10. बच्चों के सामने अच्छा आदर्श प्रस्तुत करें-

माँ-बाप सबसे ज्यादा बच्चों के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। बच्चे हर वक्त आप के स्वाभाव को देखते हैं – उस वक्त भी जब आप को लगे कि  वे अपने खेल में मग्न हैं। पति-पत्नी के बीच क्या बात चल रही है, बच्चे बड़े ध्यान से सुनते हैं, उस वक्त भी जब आप को लगे कि  बच्चे दूसरे  काम में बहुत मग्न हैं। अपने व्यवहार से बच्चे के सामने एक अच्छा आदर्श प्रस्तुत करें। पति-पत्नी आपस में लड़ें नहीं।बच्चे के व्यहार से अगर आप को बहुत गुस्सा आये तो आप अपना सयम न खोएं, धीरज से काम लें। बच्चे पर चिल्लाने की  बजाये ठंडी साँस लें और कुछ देर के लिए कमरे से बाहर चले जाएँ। या फिर कुछ ऐसा करें जिससे कि  आप का गुस्सा शांत हो जाये। आप का बच्चा “गुस्से पे नियंत्रण रखने” के महत्व को को सीखेगा। 

एडीएचडी या ऑटिज़्म? बच्चों में लक्षणों में अंतर कैसे करें-

अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) और ऑटिज्म एक दूसरे के समान दिख सकते हैं। किसी भी स्थिति वाले बच्चों को ध्यान केंद्रित करने में समस्या हो सकती है। वे आवेगी हो सकते हैं या उन्हें संवाद करने में कठिनाई हो सकती है। उन्हें स्कूल के काम और रिश्तों में परेशानी हो सकती ह यद्यपि वे कई समान लक्षणों को साझा करते हैं, दोनों अलग-अलग स्थितियां हैं।

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार संबंधित विकास संबंधी विकारों की एक श्रृंखला है जो भाषा कौशल, व्यवहार, सामाजिक संपर्क और सीखने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है एडीएचडी मस्तिष्क को ध्यान और आवेग नियंत्रण को नियंत्रित करने के तरीके को प्रभावित करता है इस बात का ध्यान रखें कि आपका बच्चा किस तरह से ध्यान देता है। और वे उन चीजों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं जो उन्हें पसंद हैं, जैसे कि किसी विशेष खिलौने से खेलना। एडीएचडी वाले बच्चे अक्सर नापसंद करते हैं और उन चीजों से बचते हैं जिन पर उन्हें ध्यान केंद्रित करना होगा। आपको यह भी अध्ययन करना चाहिए कि आपका बच्चा कैसे संवाद करना सीख रहा ह हालाँकि दोनों में से किसी भी स्थिति वाले बच्चे दूसरों के साथ बातचीत करने के लिए संघर्ष कर सकते हैं, ऑटिज्म से पीड़ित लोगों को अपने आसपास के लोगों के बारे में कम सामाजिक जागरूकता हो सकती ह उन्हें अक्सर अपने विचारों और भावनाओं को शब्दों में रखने में कठिनाई होती है, और वे अपने भाषण को अर्थ देने के लिए किसी वस्तु को इंगित करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। उन्हें आँख से संपर्क करना मुश्किल लगता है। दूसरी ओर, एडीएचडी वाला बच्चा नॉनस्टॉप बात कर सकता है।

जब कोई अन्य व्यक्ति बोल रहा हो या बात कर रहा हो और बातचीत पर एकाधिकार करने की कोशिश कर रहा हो, तो उनके बीच में आने की संभावना अधिक होती है इसके अलावा, विषय पर विचार करें। ऑटिज्म से पीड़ित कुछ बच्चे अपनी रुचि के विषय पर घंटों बात कर सकते हैं एक ऑटिस्टिक बच्चे को आमतौर पर आदेश और दोहराव पसंद होता है, लेकिन एडीएचडी वाला बच्चा ऐसा नहीं कर सकता है, भले ही यह उनकी मदद करता हो उदाहरण के लिए, ऑटिज्म से पीड़ित बच्चा अपने पसंदीदा रेस्तरां में एक ही प्रकार का भोजन चाहता है, या एक खिलौने या शर्ट से अत्यधिक जुड़ा हुआ हो सकता है दिनचर्या बदलने पर वे परेशान हो सकते है एडीएचडी वाला बच्चा एक ही काम को दोबारा या लंबे समय तक करना पसंद नहीं करता है।

अब हम एक ऐसे पिता के विषय में बताएँगे जिन्होंने साबित किया कि ए डी एच डी बच्चे को कभी कमतर नहीं आंकना चाहिए –

प्रयागराज के निवासी श्री सूरज वर्मा को अपने ९ वर्ष के  बेटे विक्रम की शिक्षा को लेकर बहुत संघर्ष करना पड़ा क्यूंकि उसे ए डी एच डी था उनकी बच्चे को शहर के नामी स्कूल्स में एडमिशन नहीं मिला कोई भी स्कूल बच्चे की परेशानी को समझना नहीं चाहता था बहुत प्रयासों के बाद उसे एक स्कूल में एडमिशन मिला लेकिन यहाँ से उसे एक सत्र के बाद स्कूल ने हटा दिया फिर उन्होंने कोशिश करके दूसरे स्कूल में एडमिशन दिलाया लेकिन यहाँ भी एक सत्र के बाद वही हुआ ऐसे करते हुए  विक्रम को ५ स्कूल बदलने पड़े लेकिन फिर भी उसके पिता ने कभी हार नहीं मानी  और  न ही विक्रम की शिक्षा को रुकने दिया उन्होंने विक्रम को घर पर ही पढ़ाना शुरू किया कुछ समय बाद उनका तबादला दिल्ली हो गया अपने तबादले के विषय में जानकर वे बहुत खुश हुए क्यूंकि उन्हें लगा दिल्ली जाकर वे अपने  बेटे को एक बार फिर से स्कूली शिक्षा दिला पाएंगे लेकिन यहां आकर भी उनके साथ वही हुआ विक्रम को दिल्ली जैसे बड़े शहर के कई स्कूलों ने एडमिशन नहीं दिया फिर उन्हें एक स्पेशल स्कूल के विषय में पता चला जहाँ ए डी एच डी बच्चों को विशेष तकनीक से शिक्षा दी जाती थी उन्होंने विक्रम को यहाँ एडमिशन दिलाया एडमिशन मिलने के बाद अपने टीचर्स के सहयोग से विक्रम पुरे मन से पढ़ने लगा और उसने साबित किया कि  ए डी एच डी बच्चे को अगर मौका दिया जाये तो वह बहुत कुछ कर सकता है और उसके  पिता ने समाज को दिखाया बच्चे के अलग होने के मतलब गलत होना कतई नहीं है .

Article by: Noopur Chauhan, Kanpur, UP

 

 

 

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